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और उनके सिद्धान्त। २७५ है कि सर्वदा और सर्वत्र निरलस हो भगवान् के इसी मन्त्र को जपता रहे।
१९-अपने धर्म को सदा श्रेष्ठ मान कर उस में श्रद्धा पूर्वक अपना जीवन व्यतीत करे । विधर्म अथवा दूसरों के धर्मसे अथवा अपने से विरुद्ध धर्म से सदा दूर रहे ।
२०-अपने इन्द्रिय रूपी अधों को खूब रोके । कभी जिज्ञासा अथवा कौतूहलवश भी इनका अन्यथा उपयोग न करे।
प्रत्येक वैष्णव को प्रातःकाल चार से पांच बजे तक अवश्य ही उठ जाना चाहिये । जागृत होने के पश्चात् 'श्रीकृष्ण' 'श्रीवल्लभाधीश' 'श्रीगुसाईजी' 'श्रीयमुनाजी' 'श्रीगुरुदेव' इत्यादि पुण्यनामो का स्मरण करना चाहिये । इस के अनन्तर श्रीनाथजी और अपने मत्रोपदेष्टा गुरु के चित्रों का दर्शन करे।
परीक्षार्थ प्रश्न वैष्णव किसका आश्रय ग्रहण करै ? अन्याश्रय क्यों नहीं करना चाहिये ? पुष्टिसृष्टिका भेद सहित निरूपण करो। आसुरी सृष्टि का भेद सहित दिग्दर्शन कराओ। मर्यादा सृष्टि क्या है ? विवेक, धैर्य और आश्रय समझाओ। श्रीमहाप्रभु की शिक्षाओ का संक्षेप में वर्णन करो।