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श्रीमदल्लभाचार्य
में भी उसी का आश्रय रखना चाहिये । भगवान् में अविश्वास का परित्याग कर आश्रय रखना चाहिये ।
प्रभु, भक्त की परीक्षा करने के लिये दुःख भेजते हैं। इस लिये उन्हें धैर्य पूर्वक सहन करना चाहिये । वह दुःख भगवदिच्छा से ही दूर हो सकता है। व्यर्थ महनत कर के ईश्वर पर अविश्वास प्रकट करना नहीं चाहिये ।।
१३-सब प्रकार का अपमान और कठोरता, प्राणिमात्र में ईश्वर की भावना रखकर, सहन करे ।
१४-इन्द्रियों के विषयों का सर्वथा त्याग करना चाहिये।
१५-इस लोक और परलोक के विषय में भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र का ही आश्रय रक्खे । अन्याश्रय कभी न करे।
१६-दुःख से बचने के लिये भय आवे तब सर्वथा भगवान् का आश्रय ग्रहण करे।
१७-जीव से यदि अपराध हो जाय तो भी कृष्ण का आश्रय ग्रहण करने से अपराध की मुक्ति होती है । किसी कार्य की सिद्धि हो तो भी भगवान् ने सिद्ध किया यह माने और यदि कार्य की सिद्धि न भी हुई तो भी भगवान् की इच्छा ही ऐसी थी यह माने । इस प्रकार विचारने से दुःख नहीं होता।
१८--अभिमान् कभी न करे । यहि कभी अभिमान् आजाय तो 'श्रीकृष्णः शरणं मम' इस मत्र का पाठ करले इस से अहंकार की निवृत्ति होती है। योग्य तो यह