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________________ २७४ श्रीमदल्लभाचार्य में भी उसी का आश्रय रखना चाहिये । भगवान् में अविश्वास का परित्याग कर आश्रय रखना चाहिये । प्रभु, भक्त की परीक्षा करने के लिये दुःख भेजते हैं। इस लिये उन्हें धैर्य पूर्वक सहन करना चाहिये । वह दुःख भगवदिच्छा से ही दूर हो सकता है। व्यर्थ महनत कर के ईश्वर पर अविश्वास प्रकट करना नहीं चाहिये ।। १३-सब प्रकार का अपमान और कठोरता, प्राणिमात्र में ईश्वर की भावना रखकर, सहन करे । १४-इन्द्रियों के विषयों का सर्वथा त्याग करना चाहिये। १५-इस लोक और परलोक के विषय में भगवान् श्रीकृष्णचन्द्र का ही आश्रय रक्खे । अन्याश्रय कभी न करे। १६-दुःख से बचने के लिये भय आवे तब सर्वथा भगवान् का आश्रय ग्रहण करे। १७-जीव से यदि अपराध हो जाय तो भी कृष्ण का आश्रय ग्रहण करने से अपराध की मुक्ति होती है । किसी कार्य की सिद्धि हो तो भी भगवान् ने सिद्ध किया यह माने और यदि कार्य की सिद्धि न भी हुई तो भी भगवान् की इच्छा ही ऐसी थी यह माने । इस प्रकार विचारने से दुःख नहीं होता। १८--अभिमान् कभी न करे । यहि कभी अभिमान् आजाय तो 'श्रीकृष्णः शरणं मम' इस मत्र का पाठ करले इस से अहंकार की निवृत्ति होती है। योग्य तो यह
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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