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________________ २६८ श्रीमद्वल्लभाचार्य थोडे में यदि कहें तो, जहां सन्मार्ग में स्थिति नहीं है, जिनकी आचार्य में श्रद्धा नहीं है, दैन्य नहीं है अथवा आचार्योपदेशो में निष्ठा नहीं है वे सव बहिर्मुख हैं। बहिर्मुखता की निवृत्ति के लिये श्रीमदाचार्यचरणों का अहर्निश चिन्तवन करना चाहिये । जो बाहिर्मुखता की निवृत्ति करनी हो तो सदा भगवदीयों का ही संग करना चाहिये । निरन्तर हरि सेवा करनी यही स्वमार्गीय मुख्य धर्म है । सेवा साधनबुद्धि से नहीं करनी चाहिये किन्तु मन इत्यादि सर्व इन्द्रियों को प्रभु में योजकर फलबुद्धि से करनी चाहिये। ___ ब्रह्मसंबंध या आत्मनिवेदन करके सदैव उसका स्मरण करते रहना चाहिये । वारंवार स्मरण करने से प्रभु शीघ्र ही हृदय में प्रकट होते हैं और बहिर्मुखता की निवृत्ति होती है। श्रीसुबोधिनीजी के अनुसार श्रीभागवत का भावार्थ सदा श्रवण करना चाहिये । प्रभु में दृढ आश्रय रखकर श्रवण और कीर्तन करने से बहिर्मुखता की निवृत्ति होती है। परीक्षार्थ प्रश्न बहिर्मुखता क्या है ? पहिर्मुखता दूर हो इसका क्या उपाय है ?
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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