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________________ २४२ श्रीमद्वल्लभाचार्य ___ हमारे सम्प्रदाय में भगवान् की सेवा वाल भाव से की जाती है। लोक में जिस प्रकार अति प्रेमास्पद बालक को, सर्व लोग सर्वरीत्या प्यार और आदर करते हैं, उसी प्रकार यहां भी भगवान् की सेवा सर्वतोधिक भाव से की जाती है। । प्रभु की किस रीति से परिचर्या करने से प्रभु को विशेष सुख होगा इस बात का ध्यान हरेक सेवक को होना चाहिये। जो भक्त अपनी सेवा से प्रीतिपूर्वक सब दुःख हर्ता भगवान् श्रीकृष्ण के भी दुःख हरने का प्रयत्न करता है उस का सर्वत्र वैराग्य है यह निश्चय जानना । प्रभु में गाढ स्नेह हो और अन्यत्र किसी भी पदार्थ में आसक्ति न हो तो उस समय प्रभु का थोडा भी दुःख सहन भक्त को नहीं होता। इस लिये वह सेवक सर्वतः भगवान् के दुःख की निवृत्ति का प्रयत्न करता रहता है । यह सब बातें प्रभु में प्रगाढ स्नेह होने से होती हैं । हमारे मार्ग में भी प्रभु पर गाढ स्नेह भाव रख सेवा की जाती है। इस लिये भगवान् को प्रसन्न करने का यही एक उत्तम मार्ग है। जिस प्रकार शिशु की सेवा हम रात्रि दिवस किया करते है । तथा किस प्रकार उसकी परिचर्या करने से कैसे वह सुखी होगा इस बात का हम सर्वदा ध्यान रक्खा करते हैं । ठीक यही बात यहां पर भी है । शीतकाल में प्रभु को
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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