________________
“सेवा”।
शुद्धाद्वैत पुष्टिमार्ग में 'सेवा' अकेली ही उत्तमोत्तम साधन मानी गई है । ब्रह्मसंबंध लेने के अनन्तर ही जीव सेवा का अधिकारी हो सकता है । कलियुग में सेवा ही दोनों तरहके भगवत् सायुज्य की प्राप्ति का एक मात्र मार्ग है । सेवा भगवान में अपूर्व माहात्म्य ज्ञान स्थापित कर अनन्य भाव से और दृढ श्रद्धा व आस्था पूर्वक करनी चाहिये ।
कलियुग के प्रभाव से सब पदार्थ अशुद्ध हो गये हैं। शुद्ध पदार्थ मिलना अत्यन्त कठिन हो गया है । शुद्ध पदार्थ मिलने पर पहले, यज्ञयागादिक सम्पन्न होते थे परन्तु अब देश, काल, द्रव्य, मत्र, कर्ता और कर्म इन की शुद्ध प्राप्ति अत्यन्त असंभव है और इसी लिये आज कल यज्ञ यागादिक कुछ भी सफल नहीं होत यह हमारे अनुभव की बात है । इस लिये भगवान् के चरणारविन्दों की प्राप्ति कराने वाली है तो कलियुग में भक्ति या सेवा ही है । ___ भगवान् की भक्ति में स्नेह होने के लिये सेवा की अत्यन्तावश्यकता है । जो वैष्णव हो कर भी सेवा नहीं करता वह