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श्रीमद्वल्लभाचार्य
की कामना करते हैं उनको सिद्धि प्राप्त नहीं होती होती भी है तो वे वहां जाकर भी, भगवद्भक्त न है ऐसे गिरते हैं कि उनका सारा गर्व खर्व हो जाता इस बात का रहस्य हमें गजेन्द्रोपाख्यान में प्राप्त होत वह कथानक यों है__पूर्व समय में शोभित और उत्तुङ्ग त्रिकूट पर्वत । गज निवास करता था । पर्वत चारों ओर से समुद्र से हुआ था और उसके चरण सर्वदा क्षीरनिधि धोया करत बडे २ सिद्धलोग, चारण, गन्धर्व, विद्याधर किन्नर और उसकी कन्दराआ का सेवन किया करते थे। वहां अप्स सङ्गीत की मधुर धुन बंधी ही रहती थी और उस धुन की जो प्रतिध्वनि थी वह बडे २ मत्त केसरीय अपने शत्रु की गर्जना का भ्रम उत्पन्न करती थी अपने शत्रु का उत्कर्ष कभी न सहनेवाले शार्दूलवर प्रत्युत्तर स्वरूप गर्वमय गर्जना किया ही करते थे।
उसी पर्वत पर किसी गुहा में, महात्मा भगवान् व ऋतुमान् नाम का बगीचा है जिसमें देवस्त्री अपने अ प्रमोद का समय व्यतीत करती आई हैं। उस बा शोभा वर्णनातीत है । एक दिन उस कानन में । करनेवाला असीम बलशाली मदोन्मत्त गजपति गजेन्द्र से व्याकुल अपने यूय सहित उस सरोवर के समीय अ