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पुष्टि, प्रवाह और मर्यादा
श्रीमदाचार्यचरण ने जगत् में तीन प्रकार के मनुष्य गिनाये हैं । पुष्टिस्थित जीव, प्रवाह मार्गीय जीव और मर्यादा शील जीव । इन तीनों प्रकार के जीवों का फल उनकी क्रिया के फल द्वारा भिन्न २ होता है। पृथिवी के समस्त मतमतान्तरों का समावेश इन तीनों मार्गों में हो जाता है। जो जीव यहीं जन्म लेते हैं किन्तु भगवान् क्या है ? मैं कौन हूं? यह जगत् क्या है ? इत्यादि दार्शनिक विचारों को जो लोग वेदोक्त रीतिसे नहीं समझते वे आसुर और चर्पणी वाच्य जीव हैं उनका काम जन्म लेते रहना और पुनः पुनः मरते रहना यह है। इन जैसों को ही प्रवाह मार्गीय जीव भी कहते हैं । सर्ग प्रलय की, जन्म मरण की जहां शृंखला नहीं तूटती वही 'प्रवाह' है । आसुरी प्रवाह विषयणी सृष्टि सब से नीची गिनी गई है । गीताजी में जो 'तानहं द्विषतः क्रुरान्संसाघु नराधमान् ' कहा है यह प्रवाही और उनमें भी दुर्श प्रवाही को लक्ष्य कर कहा है। प्रवाही सृष्टि के अनेक भेद हैं।