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और उनके सिद्धान्त।
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आप श्रीकृष्णके अनन्य भक्त थे। श्रीकृष्ण के अतिरिक्त आप किसी को भी परमेश्वर नहीं मानते थे आपका मुद्रालेख था---
जानीत परमं तत्त्वं यशोदोत्संगलालितम् । तद्न्यदिति ये प्राहुरासुरांस्तानहो बुधाः ।।
अर्थात्-सव से उच्च कोटि के ईश्वर परात्पर तत्त्व और सर्वसामर्थ्यसम्पन्न परमेश्वर यशोदा के लाल श्रीकृष्ण को ही __ जानो । इस से अतिरिक्त जो कोई किसी दूसरे को मानने को कहे उसे असुर समझो।
श्रीगुसाईजी का सन्मान मुसलमान बादशाह अकबर तक किया करता था। अनेक बार श्रीगोस्वामी विठ्ठलनाथजी को उस ने सन्मानित किया था। राजा टोडरमल तो आप के इतने अनन्य भक्त हो गये थे कि जव संग्राम में जाते तो आपका ही प्रसादी उपरणा ओढ कर जाते । पु. मा. इ.
आप मूतल पर सत्तर वर्ष और अट्ठाईस दिन पर्यन्त विराजे । आप ने संवत् १६४२ के माव शुक्ल सतमी के दिन श्री गिरिराज की कन्दरा में प्रवेश किया।
परीक्षार्थ प्रश्न ।
'विठ्ठल' शब्द की व्युत्पत्ति क्या है ? आप का जन्मस्थल और जन्मसंवत् लिखो ।