________________
२०८
श्रीमद्वल्लभाचार्य
को एक समय गर्व आया। उसने श्रीगुसाईंजी के गृह के वहां दर्शन बन्द कर दिये । आपको बडा दुःख हुआ । श्री का एक क्षणिक वियोग भी आप के लिये दुस्सह था । आप बडे दुःखित हुए और इसी दुःख के प्रवाह को आप ने 'विज्ञप्ति' के द्वारा प्रकट किया है। आप प्रत्येक दिन एक विज्ञप्ति लिख कर श्री के चरणारविन्द में अर्पण किया करते । प्रभु की सेवा के वियोग में भक्त की कैसी दशा हो जाती है यह विज्ञप्तियों के पढने से विदित होगा । आप को यह तापक्लेश का अनुभव छः मास पर्यन्त रहा था। ___ आपने संप्रदाय को सम्मान्य और दृढ करने के हेतु निम्नलिखित ग्रन्थों की भी रचना की थी। १-अणुभाष्य (शेष)-'फलमत उपपत्तेः' इस सूत्र
से लेकर शेष पर्यन्त आपकी
रचना है। २-विद्वन्मण्डन- वाद में अत्यन्त उपयोगी विद्व
त्तापूर्ण ग्रन्थ । आपने इसकी रचना स्वयं ही एकान्त में बैठ कर नहीं की किन्तु अपने पुत्रों को सन्मुख बैठाकर की थी। वे वाद करते जाते थे और आप उनका यथोचित उत्तर लिखते जाते थे । ऐसा ऐतिह्य है।