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और उनके सिद्धान्त । प्रथम पत्नी से आप को श्रीगिरिधरजी, श्रीगोविन्दराय जी, श्री वालकृष्ण जी, श्री गोकुलनाथ जी, श्री रघुनाथ जी एवं श्री यदुनाथजी इस प्रकार छः पुत्ररत्नों की प्राप्ति हुई थी। श्री पद्मावती बहू जी द्वारा श्री घनश्यामजी प्रकट हुए थे । सम्प्रति जितने गोस्वामी यहां विराजमान हैं वे सब गिरिधर जी और यदुनाथ जी के वंशज हैं । अवशिष्ट पुत्रों का वंश चला नहीं है। __ श्री विठ्ठलनाथ जी ने ही सर्व प्रथम 'गोस्वामी' शब्द धारण किया था।
आप ने अपने समय में ही अपने प्रभाव का सुखानुभव कर लिया था। आप के प्रभाव से प्रभावान्वित हो अनेक राजा महाराजा आप के शिष्यत्व को प्राप्त हुए थे । आप के लिये जो 'अनेकक्षितिपश्रेणिमूर्धासक्तपदाम्बुज' विशेषण व्यवहृत हुआ है वह यथार्थ है। ___ आप गान्धर्व शास्त्र के भी प्रशंसक थे। किन्तु अन्यथा रीतिसे उसका उपयोग करना अनुचित जान आपने इसे भगवत्सेवा में विनियोग किया । आप ने स्वयं भी श्री के आगे गाये जाने के लिये विविध गीतिकाओं का निर्माण किया ।
एक समय आप को श्रीनाथजी का वियोग भी सहन करना पड़ा था। श्री नाथ जी के अधिकारी श्री कृष्णदास