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और उनके सिद्धान्त। १९९ दूसरे प्रकार के जीव वे हैं जिन को सुख की प्राप्ति स्वर्ग और मोक्ष के द्वारा होती है । अथवा जिन्हें वैदिक साधनों को संपादित करने की अनुकूलता मिली है उन्हें मर्यादा जीव कहते हैं। इन में से कितने ही जीव अपने विचित्र साधनों द्वारा स्वर्गादि लौकिक सुख को प्राप्त होते हैं। कितने ही सुख की प्राप्ति करते हैं तो कितने ही दुःखाभावरूप मोक्ष को प्राप्त होते हैं।
तीसरे प्रकार के जीव वे हैं जिन्हें प्रभु का पूर्ण अनुग्रह प्राप्त हुआ है । जिनका प्रभु में दृढ विश्वास और प्रेम होने से त्रैवर्गिक साधनों में मन नहीं फँसता । वे जीव नाम सेवा में ही मग्न रहते हैं तथा स्वरूप सेवा को ही अत्यन्त प्रेम पूर्वक अपनी दोनो सायुज्य मुक्ति का प्रधान मार्ग समझते हैं उन्हें अनुग्रह संबंधी या पुष्टिमार्गीय जीव कहते हैं । इन के यहां लीला प्राप्ति को ही मोक्ष कहा है।
जीव के लिये श्वेताश्वतर उपनिषद् में कहा हैअंगुष्ठमात्रो रवितुल्यरूपः संकल्पाहंकारसमन्वितो यः । बुद्धेर्गुणेनाऽऽत्मगुणेन चैव आराममात्रो ह्यपरोपि दृष्टः॥
अर्थात्-जो जीव बुद्धि के गुण से संकल्प और अहंकार युक्त है और स्वयं सूर्यवत् प्रकाशित है । अंगुणवत् है और