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श्रीमद्वल्लभाचार्य वाले हाथ आज एक कुए में पहुंचने वाली रस्सी से भी नहीं बांधे जा सकते हैं यह हुआ क्या ? ___ भगवान् ने जब यह देखा तब उसकी दशा पर दया
आगई और आप सबको बांधने वाले मी बँध गये ! __ यह अर्थ उस वेदकी ऋचा का है जिसमें ब्रह्म अनेक ब्रह्माण्ड से भी महत् बतलाया जाकर अणुसे भी अणु बतलाया गया है । वेदों में प्रतिज्ञा हैं, और उदाहरण हैं श्रीमद्भागवत में।
४-"ब्रह्म सर्व धर्मों का केन्द्र है।"भाष्य-कितने ही वादी ब्रह्म को निर्धर्मक निर्विशेष, निराकार और निर्गुण मानते हैं । श्रीवल्लभाचार्यजी सूत्रकार के मतानुसार 'सर्वधर्मोपपत्तेश्च' 'सर्वोपेता च दर्शनात्' इत्यादि तत्त्व सूत्रों का अवलंबन कर ब्रह्म को सर्व धर्मों का केन्द्र मानते हैं। ब्रह्म में नियतवाद स्थापन करने से ब्रह्म में इयत्ता आजाती है। उसी प्रकार ब्रह्म को अत्यन्त निर्गुण मानने से भी उस का ज्ञान होना भी असम्भव हो जाता है और इससे शास्त्र मात्र वृथा हो जा सकते हैं । इस लिये श्रुति स्मृति, सूत्र, पुराण और इतिहास इनकी एकवाक्यता कर ब्रह्म को आपने सर्व धर्मों का केन्द्र सिद्ध किया है।
५-"ब्रह्म सर्वसामर्थ्य सम्पन्न ईश्वर है । और वही परमतत्व भगवान् श्रीकृष्ण हैं"।