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और उनके सिद्धान्त । १९१ लेकर छाछके माट पर देमारी । छाछ विखर गई । अब लगा डर सो आप भाग चले। इतने में माता आई। सारे घरमें छाछ ही छाछ देख अपने पुत्र का यह सुकार्य है यह समझ लिया। इधर कृष्णने एक और उपद्रव तैयार कर दिया। यशोदा जिस छाछ को विलोती २ बछिया बांधने गई थी उसी छाछ को आपने लुढका के विखेर दी । मा ने आकर देखा तो उनके क्रोध का पार न रहा । माता ने शिशु को आज उचित शिक्षा देना ठान लिया और इनके हाथ पैर बांधने के लिये एक रस्सीका टूक ले इनके पीछे पकडने को दौडी ।
तमाशा तो देखिये ! जिस अचिंत्य स्वरूप को पकड़ने में वडे २ देवता, वडे २ राक्षस और बडे २ योद्धा भी असमर्थ हुए हैं उसे पकड़ने के लिये विचारी एक निरीह असमर्थ
और क्षुद्र गोपी प्रयत्न कर रही है! भगवान् ने एक लता के दो तीन चक्कर लगाये । किन्तु जब देखा कि मा थक गयी है तब आप ही अनुग्रह कर के पकड लिये गये । 'यमेवैष वृणुते तेनैव लम्यः'।
माने अब उन्हें बांधना शुरु किया । किन्तु अरे ! यह क्या ! भगवान् तो वे ही नहीं ! रस्सी छोटी हो गई ! गोपीने एक रस्सी और जोडी । फिर भी वह छोटी हो गई !
भी ओछी! गोपीने विचारा कि यह क्या बात हुई । मेरे लाल के एक मुट्ठीमें आजनो
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