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और उनके सिद्धान्त ।
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अंतर्यामी होते हैं । इन सवों की अभिव्यक्ति सत्यरूप ब्रह्म में से होती है । इस लिये वह सत्य है। इस लिये यह जगत् भी असत्य नहीं हो सकता । ___ आविर्भाव और तिरोभाव ये परब्रह्म की दो शक्तियां है। जब परब्रह्म की आविर्भाश शक्ति की क्रिया चलती है उस समय जगत् अस्तित्वमें आता है । जव ईश्वर की तिरोभाव शक्ति क्रियावती होती है उस समय केवल भगवान् ही अवशिष्ट रहते हैं । जगत् ब्रह्म में लीन हो जाता है। ____ जगत् तीनों काल में सत्य है इसी लिये उसे ब्रह्मत्व है
और 'सत्त्वाचावरस्य' इस सूत्र में यह वात भली भांति प्रमाणित हो जाती है । श्रुति में भी कहा है-'सदेवसौम्येदमय आसीत् ।' तैत्तिरीयोपनिषद में भी कहा है'यदिदं किंच तत्सत्यमित्याचक्षते ।' अर्थात्-यह नामरूपात्मक जगत् प्रथम सत्य ही था और अब भी जो कुछ है वह सब सत्य है । इन श्रुतिओं से हम भली भांति जान सकेंगे कि जगत् पूर्व में भी सत्य था वर्तमान में भी सत्य है और भविष्य में भी सत्य ही रहेगा । जगत् के विषय में भ्रान्ति रहने पर ही उस में विकार दिखलाई देता है। वास्तव में वह विकारवान् नहीं है । केवल आविभर्भाव और तिरोभाव की शक्ति वही उस में जन्म और मरण की भ्रान्ति करती है । इस लिये जिस जगत् को श्रुति,