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________________ १७२ श्रीमद्वल्लभाचार्य आविर्भावतिरोभावैर्मोहनं बहुरूपतः । इन्द्रियाणां तु सामर्थ्याददृश्यं स्वेच्छयातु तत् ॥ आविर्भाव और तिरोभाव ब्रह्म की शक्ति हैं । उन शक्ति यों के द्वारा ब्रह्म नाना रूप से मोह उत्पन्न करता है । वह इन्द्रियों के सामर्थ्य से अदृश्य है उसी प्रकार अपनी इच्छा से दृश्य भी है। स एव हि जगत् कर्ता तथापि सगुणो न हि । गुणाभिमानिनो ये वै तदंशाः सगुणाः स्मृताः ७३ कर्ता स्वतन्त्र एव स्यात्सगुणत्वे विरुध्यते । अर्थात्-वही ब्रह्म जगत् का कर्ता है फिर भी सगुण नहीं है। तीन गुणों से युक्त जिन देवता ओं को गुणाभिमानी कहा है वे ब्रह्म के ( भगवान् श्रीकृष्ण के) अंश हैं। वे देवता सगुण हैं किन्तु कर्ता तो स्वतत्र ही होता है । स्वतंत्रता में सगुणत्व विरुद्ध है। श्रीमद्वल्लभाचार्य महाप्रभु ने और भी स्थलो में ब्रह्म ब्रह्म का का स्वरूप कैसा माना है इस बात को अब स्वरुप हम और निरुपण कर देते हैं । निबन्ध में आप आज्ञा करते हैंयज्ञरूपो हरिः पूर्वकाण्डे ब्रह्म तनुः परे । अवतारी हरिः कृष्णः श्रीभागवत ईर्यते ॥शा.॥११॥
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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