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________________ १७० श्रीमद्वल्लभाचार्य ऐसे ब्रह्म के स्वरुप का ज्ञान कराने वाला ही ब्रह्मवाद है।ब्रह्म के स्वरुप का स्वरुप शास्त्रो में इस प्रकार वर्णित हैसर्वतः श्रुतिमल्लोके सर्वमावृत्य तिष्ठति । अनन्तमूर्तितद् ब्रह्म ह्यविभक्तं विभक्तिमत्॥ नि. शा. ४४. अर्थात्-ब्रह्म के सर्वत्र इन्द्रियादि हैं, ब्रह्म सर्वत्र व्याप्त होकर स्थिति करनेवाला है, वह अनन्तमूर्ति है, वह विभाग रहित है, और (इच्छामात्र से प्रकट होने के लिये) विभागवाला है। सचिदानन्दरूपं तु ब्रह्म व्यापकमव्ययम् । सर्वशक्तिस्वतन्त्रंचसर्वज्ञं गुणवर्जितम् ।। नि.शा.६५. अर्थात्-ब्रह्म सत्, चित् और आनन्द स्वरूप है। वह व्यापक है, नाशरहित है, सर्वशक्तिमान् है, स्वतत्र है, सर्वज्ञ है और प्राकृतगुणरहित है।। सजातीयविजातीयस्वगतद्वैतवर्जितम् । सत्यादिगुणसाहौर्युक्तमौत्पत्तिकैः सदा ॥नि.शा.६६. अर्थात् वह ब्रह्म सजातीय विजातीय स्वगत भेदरहित है और नित्य स्वाभाविक सत्य आदि हजारों गुणों से युक्त है। सर्वाधारं वश्यमायमानंदाकारमुत्तमम् । प्रापंचिकपदार्थानां सर्वेषांतद्विलक्षणम् ॥ ६७॥
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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