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ब्रह्मवादके कुछ सिद्धान्त
और उनकी समझ
ब्रह्मवाद के कुछ सिद्धान्तो का दिग्दर्शन कराने के पहले यदि 'ब्रह्मवाद' का अर्थ स्पष्ट कर दिया जायगा तो विद्यार्थियों को बडी सुगमता होगी। ___ यह हम पूर्व कह आये कि भगवान् श्रीकृष्ण को ही ब्रह्म कहते हैं । स्मृति में जिसे परमात्मा और पुराणो में जिसे भगवान् कहा है उसे ही वेदो में ब्रह्म शब्द से संबोधित किया है।
'ब्रह्म' शब्द का वेद शास्त्रादि समन्वित अर्थ है---- निर्दोषपूर्णगुणविग्रह आत्मतन्त्रो निश्चेतनात्मकशरीरगुणैश्च हीनः । आनन्दमात्रकरपादमुखोदरादिसर्वत्र च विविधभेदविवर्जितात्मा ॥ नि.शा.४४. अर्थात् जो दोष रहित है, सर्वगुणों से संपूर्ण है, स्वतंत्र है, जडशरीर के गुणो से रहित है, करपादमुख तथा उदर इत्यादि अवयव जिसके आनन्दमात्र स्वरुप वाले हैं, अथवा त्रिविध भेद रहित है वही ब्रह्म है।