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________________ १६८ श्रीमदल्लभाचार्य अन्तःकरण को इतना निर्मल निर्माण कर देती हैं कि जिस से भक्त के हृदय में भगवान् की भावना उदय हो सके। पुष्टिमार्गीय मान्यता के अनुसार भगवान् में जितने धर्म हैं उतने ही धर्म श्रीयमुनाजी में हैं। श्रीयमुनाजी अपने भक्त के कलि दोषों को दूर करती हैं। अपने भक्तों को भगवान् के अत्यन्त प्रिय बनाती हैं। इस देह का नवीन सेवोपयोगी देह तइयार करती हैं। सम्प्रदाय में श्रीकालिन्दी और श्रीयमुनाजी भिन्न २ मानी गई हैं। श्रीमहानुभाव श्रीहरिरायचरण की अज्ञानुसार श्रीयमुनाजी, श्रीठाकुरजी एवं श्रीमहाप्रभुजी तीनों समान स्वरूप में स्थित हैं। तीनों सेवोपयोगी देह दे सकते हैं। तीनों भक्त का निरोध कर सकते हैं और तीनों ही भाव भावनाओं का दान कर सकते हैं। श्रीयमुनाजी के समकक्ष श्रीलक्ष्मीजी भी नहीं हैं । श्रीयमुनाजी का भक्त अवश्य श्रीकृष्णको प्रसन्न कर सकता है। श्रीयमुनाजी यम की भगिनी हैं । यम अपनी भगिनी _ के भक्तों पर कोप करने में असमर्थ हैं। ___ परीक्षार्थ प्रश्न । श्रीयमुनाजी का स्वरूप और सामर्थ्य क्या है ? श्रीयमुनाजी के सेवन से किन फलों को प्राप्ति होती है ?
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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