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________________ और उनके सिद्धान्त। १६५ बाँचें रहते हैं । ब्रह्मसंवन्ध लिये पीछे जिस प्रकार पुलिस को देखकर चोर भाग जाते हैं उसी प्रकार से सेवा वाधक दोष भी जीव को छोड भाग जाते हैं। ___ मर्यादा मार्ग में दोष की निवृत्यर्थ ब्राह्मण, क्षत्री या वैश्यादिको प्रायश्चित्त करना पडता है किन्तु शुद्धाद्वैत पुष्टिमार्ग में हर कोई जीव भी ब्रह्मसंबंध लेने से शुद्ध हो जाता है अर्थात् उसकी सेवा समयमें वाध करनेवाली दोषनिवृत्ति हो जाती है। ब्रह्मसंबंध मन्त्र यह प्रायश्चित्त का आधिदैविक स्वरूप है इस लिये जीव के सर्व दोषों की निवृत्ति हो जाती है। श्रीमहाप्रभुजी आज्ञा करते हैंब्रह्मसंबंधकरणात् सर्वेषां देहजीवयोः। सर्वथा दोष निवृत्तिःस्यात् दोषाः पंचविधाः स्मृताः॥ देह और उसके अंग रूप इन्द्रिय, तथा देह के संबंधी स्नेही और धनादि के सहित, ब्रह्मसंबंध होता है तब सब में से अपनी ममता हट जाती है और जीव को अपने स्वरुप का ज्ञान हो जाता है। __ब्रह्मसम्बन्ध हो जाने पर ऐसी शुद्ध भावना रखनी मानो अपने जितने आत्मीय वर्ग हैं या अपना जो भी कुछ है वह सब प्रभुका ही है प्रभुकी आज्ञा से अब नौकर की भांति मैं इनका उपयोग कर रहा हूं। मेरा कुछ भी नहीं है। सब प्रभुका ही है।
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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