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१४६ श्रीमदल्लभाचार्य विद्वानोंने आपके विजयको स्वीकार किया ।
भगवान् श्रीकृष्णको वेद और वेदान्तों में ब्रह्म, स्मृति में परमात्मा, और भागवत में भगवान् शब्दों से सम्बोधित किया है । ब्रह्मा, विष्णु और रुद्र तीनों हमारे यहां गुणावतार माने गये हैं किन्तु भगवान् श्रीकृष्ण निर्गुण और परब्रह्म हैं । भगवान् क्षर और अक्षर से भी उत्तम हैं। इसी से पुरुषोत्तम हैं । गीताजी में कहा है
यस्मात्क्षरमतीतोहमक्षरादपि चोत्तम ।। अतोस्मि लोके वेदे च प्रथितः पुरुषोत्तमः ॥
क्षर अर्थात् तुच्छ क्षयशाली-छोटी से छोटी वस्तु से लेकर ब्रह्मा पर्यन्त क्षर है । और अक्षर है गणितानन्द अक्षर ब्रह्म । भगवान् श्रीकृष्ण के कई प्रकार के अवतार हैं । अंशावतार, कलावतार और आवेशावतार इस प्रकार भगवान् कई प्रकार से यहां अवतार ग्रहण करते हैं । जब भगवान् व्यापि वैकुण्ठ में विराजते हैं तब आप की संज्ञा पुरुषोत्तम नाम से होती है । जब यहां प्रकट होते हैं तब वेही श्रीकृष्ण कहाते हैं।
वैष्णवों के सेव्य श्रीकृष्ण ही हैं। वेही परब्रह्म हैं । अक्षर ब्रह्म भी भगवान् श्रीकृष्ण के अंश हैं। वेदो में अक्षर ब्रह्म को भगवान् श्रीकृष्ण की त्रिपाद्विमूति कहा गया है । अन्य देवता उन के ही अङ्ग हैं । 'कृष्णस्तु भगवान्स्वयम्'