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श्रीमद्वल्लभाचार्य मनुष्याणां सहस्रेषु कश्चिद्यतति सिद्धये । यततामपि सिद्धानां कश्चिन्मां वेत्ति तत्त्वतः ॥ हजारों मनुष्यों मे से थोडे ही मुझे जानने और प्राप्त करने का यत्न करते है किन्तु उन थोडे मनुष्यों में से भी कोई ही मुझे तत्वतः जान सकता है। ___ भूत भविष्य वर्तमान सब भगवान् श्रीकृष्ण जानते हैं किन्तु उनको कोई नहीं जानता । आप मायारुपी जवनिका से ढके हुए हैं इस लियें आपके प्रकृत स्वरुप को सर्वसाधारण नहीं जान सकते । यद्यपि वे दिव्य स्वरूप से अलक्ष्य हैं, अस्पर्य, अगोचर और अप्राप्य हैं किन्तु अनन्य माव से निरन्तर स्मरण करने वाले के लिये वे सुलम हो जाते हैं । अनन्य भावभक्ति से ही भगवान् श्रीकृष्ण प्रसन्न होते हैं । जिनके अन्तः करण कामक्रोधादिक से मलिन हैं ऐसे साधारण मनुष्यों के लिये भगवान् दुर्लभ है । किन्तु जो लोग आपके चरणारविन्द का ध्यान प्रत्येक क्षण किया करते हैं उनको आप सहज में ही दर्शन देते हैं । भक्त की इच्छा के अनुकूल आप भक्तों के अनुग्रहार्थ स्वरूप धारण करते हैं।
उत्कलदेश के राजा की सभा में एक समय विवाद खडा हुआ । विवाद के विषय थे-मुख्य शास्त्र कौनसा ? परब्रह्म परमात्मा कौन ? मुख्य मन्त्र कौन सा ? और मनुष्य