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और उनके सिद्धान्त ।
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__का कर्तव्य क्या है ? श्रीमद्वल्लभाचार्यजी जिस समय
उत्कल पधारे उस समय यह वाद चल रहा था । श्रीमहाप्रभुजी के साथ सात दिन तक इस का विवाद होता रहा । श्रीमहाप्रभुजी को पण्डितों के साथ विवाद बढाना अभीष्ट नहीं था क्यों कि पण्डितवर्ग अपनी बात को मनाने का वितण्डा खडा करना चाहते थे । फलतः श्रीमहाप्रभुजीने राजा से कहा कि 'राजन् , इस सभा में वाद तो यथार्थ चल नहीं सकता इस लिये यही वात श्रीजगन्नाथजी को क्यों न पूछी जाय । वे जो कहें सो सर्वथा मानने लायक होगी।' निदान श्रीजगन्नाथजी के मंदिर में कागद कलम इत्यादि रख सब वाहर निकल आये और किंवाड बंद कर दिये गये । कुछ देर बाद कपाट खोलकर देखा तो कागज पर निम्नाङ्कित श्लोक लिखा हुआ था
एकं शास्त्रं देवकीपुत्रगीत
सेको देवो देवकीपुत्र एव । मन्त्रोप्येकस्तस्य नामानि यानि
कर्माप्येकं तस्य देवस्य सेवा ॥ अर्थात् शास्त्रों में केवल एक ही गोविन्द द्वारा कही गई श्रीमद्भगवद्गीता है, देवों में एक देवकी पुत्र श्रीकृष्ण ही सर्व श्रेष्ठ हैं । मन्त्र उनके नाम हैं और जीव का एक मात्र कर्तव्य भगवान् की सेवा करना है।