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________________ १२८ श्रीमद्वल्लभाचार्य धर्तोच्छिलीन्ध्रमिव सप्त दिनानि सप्त वर्षो महीध्रमनधैककरणलीलम् ॥ अर्थात्-गोपोनें जिस समय इन्द्र को यज्ञ देना बन्द कर दिया उस समय इन्द्रने कुपित हो व्रज को बहा देने के लियें व्रज पर घोर वर्षा की थी। उस समय भगवान श्रीकृष्णने, सात वर्ष के सांवले ने सात दिन पर्यन्त अपनी एक उंगली पर श्रीगिरिराज को धारण कर व्रज जनों की रक्षा की थी। उस समय का स्वरूप ही इस समय श्रीनाथजी के स्वरूप में विराजमान है। ___ मत्र भागवत में लिखा हैतामस्य रीति परशोरिव प्रत्यनीकमख्यं भुजे अस्य वयसः। सचायदि पितुमंत मिव क्षयं रत्नं दधाति भरहूतये विशे ॥ श्रीमंत्रभागवतम् । द्वितीयं वृन्दावनकाण्डम् । भाष्यम् । तामस्येति । तां महता वर्षेण व्रजो नाशनीय इत्येवं रूपां, परशोः इव अस्य इन्द्रस्य रीतिं वर्षा क्रियां तत्प्रकार वा, आलोच्य अस्य इन्द्रस्य प्रत्यनीकं भागहरत्वात् शत्रुमिव रत्नं क्षयं रत्नगृहं गोवर्धनमित्यर्थः,अस्य सप्तवार्षिकस्य श्रीकृष्णस्य वर्यसः सर्व हितकर्तुः भुजे वाम हस्ते अख्यं अपश्याम । सचा गोपवृन्दवयस्यैः।
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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