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________________ १२० -श्रीमद्वल्लभाचार्य के कुल की थी जिसका नाम धूसर था । वह प्रतिदिन सायंकाल के समय घर आते २ अपने झुंड में से अलग होकर श्रीनाथजी जहां बिराजते थे उस जगह जा कर अपना पय श्रीनाथजी के मुखारविन्द में स्रवण करती। उस दूध को भगवान् अरोगते । छः मास पर्यन्त यह कथा किसी को भी ज्ञात न हुई । एक समय जब इस गाय के अल्प दुग्ध दान पर सन्देह हुआ तब सद् पांडे स्वयं इसकी टोह लेने के लिये एक दिन गाय के पिछाडी हुआ । __ वहां जाकर उसने देखा कि उसकी धूसर गाय भगवान् को दुग्ध पान करा रही है। भक्त भगवान् के इस अपूर्व चरित्र को देख कर मुग्ध हो गया। अपने को परम सौभाग्यवान् मान भगवान् के चरणारविन्द में गिर पड़ा । ___ भगवान् प्रसन्न हुए बोले-"गिरिराज गोवर्धन मेरो ही स्वरूप और मोकू अत्यन्त प्रिय है। मैं यहां सर्वदा क्रीडा करूं हूं। या समय श्रीमहाप्रभुजी भूतल पै पधारे हैं अतः मैं भी उनकू अपनी सेवा को दान करवे प्रत्यक्ष भयो हूं। मेरो नाम देवदमन है। लीलान्तर सूं इन्द्र दमन और नागदमन भी मेरो ही नाम है। इन्द्र को गर्व खर्व करके ताको दमन कियो तासूं मैं इन्द्र दमन हूं। कालिन्दीकू निर्विष करवे के ताईं नाग को दमन कियो
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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