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श्रीनाथजी
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शुद्धाद्वैत वैष्णव भक्तोंके लिये परमपूज्य और परम माननीय स्वरूप श्रीनाथजी का है। पूर्णपुरुषोत्तम श्रीकृष्णचन्द्र ही आप स्वयं, श्रीनाथजी के स्वरूप में भूतल पर विराजते हैं । आपका वर्तमान विराजमान स्वरूप उस समय का है जिस समय आपने इन्द्रके अत्याचार से श्रीव्रजभक्तोंको बचाने के लिये श्रीगोवर्धन गिरिराजको सात दिन पर्यन्त धारण किया था। __ आपका प्राकट्य रहस्य भी अद्भुत है । ब्रजमण्डलके श्रीगिरिराजधरणकी एक कन्दरा में से आपकी ऊर्श्वभुजा का प्राकट्य संवत १४६६ श्रावणवदी ततीयाको सूर्योदय के समय श्रवणनक्षत्रमें हुआ था । व्रजवासीयों को भुजा के दर्शन उसी संवत् की नागपंचमी को हुआ था।
गिरिराजधरणकी कन्दरासे एकाएक भुजा का दर्शन कर व्रजवासीमण्डल अत्यन्त आश्चर्यान्वित हुआ । किन्तु उनके आश्चर्य को घटाते हुए वहां ही एक वृद्ध व्रजवासी बोला