SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 162
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ ८८ श्रीमदल्लभाचार्य ___ अर्थात्-पुष्टिमार्ग सब सम्प्रदायों से श्रेष्ठ है । क्यों कि यहां गिरने या पडने का भय नहीं है । भक्ति मार्ग का अनुसरण करते रहने से कभी लौकिक या वैदिक बाधा आकर उसे कर्तव्य विमुख नहीं कर सकतीं क्यों कि यहां तो सर्व दुःखों के मोचक आनन्द कन्द भगवान् श्रीकृष्ण हैं । वे ही सर्वथा जीव के मालिक हैं। जीव ने तो उनको ही अपना आत्मसमर्पण कर दिया है। अब उसे डर नहीं है। श्रीमहाप्रभुजी कहते हैंचिन्ता कापि न कार्या निवेदितात्मभिः कदापीति। भगवानपिपुष्टिस्थो न करिष्यति लौकिकींचगतिम्॥ अर्थात्-पुष्टिमार्गीय वैष्णव को जिसने ब्रह्मसंबंध ले लिया है । अपने विषय में चिन्ता करनी नहीं चाहिये । क्यों कि अब तो भगवान् उसके मालिक हो गये है। वे सेवककी दुर्गति नहीं करेंगे । पुष्टिस्थ भगवान् जीवकी लौकिक गति नहीं करेंगे। हम अन्यत्र कह आये हैं कि हमारा पुष्टिमार्ग विश्वधर्म पुधिमार्ग के १ है । क्यों कि यह ऐसा सीधा, सरल और अधिकारी सच्चा मार्ग है, जिसमें मोक्ष की प्राप्ति और २ कौन हैं ? मार्गों की अपेक्षा बहुत शीघ्र हो सकती है। यहां केवल भगवान् की कृपा ही सब कुछ है । क्यों कि जीव निःसाधन है । जब भगवान् कृपा करते हैं तभी मनुष्य
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy