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________________ और उनके सिद्धान्त। भलाई ही देखे । भक्तकी बुराई होने पर भी धैर्य रखना योग्य है । न जाने कब प्रभु भाग्योदय करें ? विपत्ति में विचलित होने से भक्त की अस्थिरता मालुम होती है। ऐसे ही सरल किन्तु उत्तमोत्तम मार्ग को प्रचलित करने वाले श्रीमद्वल्लभाचार्य थे। __जब देश, काल, द्रव्य, मत्र, कर्ता और कर्म ये छओं पदार्थ शुद्ध हों तब यज्ञ यागादिक एवं अन्य वैदिक क्रियायें फलवती हो सकती हैं । कलियुग में इन छओं वस्तुओंका शुद्ध रूप में मिल जाना अत्यन्त दुर्लभ है। इस लिये जीव के परम कल्याण के लिये श्रीमहाप्रभुजी ने, यह विचार कर, कि कलियुग में विचारा अन्य सामर्थ्य सम्पन्न जीव अपने प्रयास से भगवत्प्राप्ति नहीं कर सकता और न वह यहां यज्ञ यागादिक कर के ही अपना मोक्ष कर सकता है । यह सर्वोच फल प्रदान करनेवाला पुष्टिमार्ग लोक में प्रचलित किया । यह ऐसा उत्तम मार्ग है कि___ 'धावन्निमीत्य वा नेत्रे न पतेन्नस्खलेदिह ।' अर्थात् इस भक्तिमार्ग का आंख मीच कर मी भले बुरे का ज्ञान रहित होकर भी यदि अनुसरण करता जाय तो भी वह कमी न तो गिरेगा न उसका स्खलन ही होगा। उत्तममार्ग का यही लक्षण हैमार्गोयं सर्वमार्गाणामुत्तमः परिकीर्तितः। यस्मिन्पातभयं नास्ति मोचकः सर्वथा हरिः।
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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