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और उनके सिद्धान्त। इसी इच्छा से प्रेरित हो वह जरठ अश्रुप्लावित नेत्रों से कातर हो वालक नारायण की दिशा तरफ देख भयभीत हो पुकार उठा-'नारायण'! __ एक क्षण में वहां विचित्र परिवर्तन हो गया । उस मुमूर्षु अजामिल के इन अन्तिम शब्दों ने बड़ा प्रभावपूर्ण कथानक उपस्थित कर दिया । यद्यपि 'नारायण' यह एक सांकेतिक नाम था और यह नाम भी इस अजामिलने भगवान् को लक्ष्य कर कभी नहीं कहा था । तथापि भगवान् ने इसे दारुण यमयातना से बचा लिया । यह है गवान की असीम कृपा का एक तुच्छ उदाहरण । जहां पापी अजामिल भी साङ्केतिक भगवन्नाम से मुक्त हो गया । जो लोग ऐसे कृपालु भगवान् की परम भक्ति करते हैं उन पर भगवान् प्रसन्न हों इस में तो क्या आश्चर्य है। ___ भगवान् की कृपा का एक प्रभाव और देखिये । महर्षि कश्यप की पत्नि ने अपने पति को अपनी अनुरक्ति से प्रसन्न किया । महर्षि प्रसन्न हो कर बोले 'भद्रे, मैं तुमारी सेवा से प्रसन्न हूं। तुम अपनी इच्छा मेरे आगे प्रकट करो मैं उसे परिपूर्ण करुंगा।' इस प्रकार पति के कृपा पूर्ण शब्द सुन दिति को कुछ साहस हुआ । वे बोली'स्वामिन् , इन देवतों ने और विशेष कर इनके स्वामी ने मुझे बड़ा कष्ट पहुंचाया है। यदि आप मेरी सेवा से कुछ भी प्रसन्न हुए हों तो प्रभो ! मेरी कुंख से एक ऐसा प्रता