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________________ ७६ श्रीमद्वल्लभाचार्य हुए और आपने ही विष्णुस्वामी मत के साथ २ प्रभुसे प्राप्त 'शुद्धाद्वैत' या 'पुष्टिमार्ग' का उपदेश दिया । विष्णुस्वामी अनेक हुए हैं । जिस भक्तिमार्ग में परंपरा प्राप्त श्रीकृष्ण के मंत्रादि का उत्तम दान हो उसे 'पुष्टि' सम्प्रदाय कहते हैं । यह है पुष्टिमार्ग का मर्म । इस मर्म का अर्थ और रहस्य समझ जाने पर सब प्रकार की शंका का निरास होता है संक्षेप में सम्प्रदाय का मर्म बता दिया जाय तो वह है 'भगवान् को प्रसन्न करने का प्रयत्न करते रहना' । जव भगवान् ही प्रसन्न हो गये तो फिर और क्या बाकी रहा ? 'किमलभ्यं भगवति प्रसन्ने श्रीनिकेतने ! ' वास्तव में यदि कहा जाय तो यदि कोई भी सम्प्रदाय सार्वभौम सम्प्रदाय ( Universal religion) हो सकता है तो वह हमारा 'पुष्टिमार्ग' ही है | पुष्टिमार्ग का मर्म और पुष्टिमार्ग का रहस्य इतना तो सर्व प्रिय और जगत् व्यापी है कि वह अपने आप ही आज भी जगत् का सम्प्रदाय हो रहा है । विरक्त संन्यासी को देखो, कर्म ज्ञानी को देखो और घर में फंसे हुए एक गरीब गृहस्थ को देखो; वे किस की इच्छा रखते हैं ? ये सब एक ही इच्छा रखते हैं । 'प्रभु हमारे ऊपर प्रसन्न हो' यह इन लोगों की इच्छा बनी रहती है । अर्थात् सत्य कहा जाय तो ये सम्प्रदाय का मर्म
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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