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और उनके सिद्धान्त । सब 'पुष्टिमार्ग' के ही उपासक हैं । इसी लिये यदि विश्वधर्म की योग्यता रखने वाला संसार में कोई भी संप्रदाय हो सकता है तो वह 'पुष्टिमार्ग ही है ।
इस कलियुग में जव कि देश, मन्त्र, काल, कर्म द्रव्य विश्वधर्म और कर्ता, सब दोष युक्त हो गये है और
पुष्टिमार्ग इनके द्वारा जब भगवान् को प्रसन्न करना नितान्त ही कठिन हो गया है हमारा पुष्टिमार्ग विश्वधर्म की जगह ग्रहणकर जीव को सत्पथ पर लाकर भगवान को प्राप्ति करने का मार्ग बताता है । सब से अच्छा, सब से सरल और गम्भीर और सब से उत्तम यह पुष्टिमार्ग है। इस पथ पर विचरण करने वाला कभी दुःख का अनुभव नहीं करता। 'धावन्निमील्य वा नेत्रे न पतेन्नस्खलेदिह' अर्थात् आंख मीच कर भी यदि कोई इस मार्ग पर दौडता है, तो यह मार्ग इतना तो साफ सुथरा और निष्कण्टक है कि दौडने वाला इस पर न तो गिरता ही है और न खिसलता ही है। ऐसे धर्म की विश्व को आवश्यकता है और यही हमारा 'पुष्टिमार्ग' है । व्यासजी ने भागवत में लिखा है-'एष निष्कण्टकः पन्या यत्र सम्पूज्यते हरिः' अर्थात् जहां भगवान् श्री कृष्ण अच्छी तरह से पूजे जाते हों वही उत्तम मार्ग है। इस सिद्धान्त का पुष्टिमार्ग में अच्छी तरह से समन्वय होता है । पुष्टिमार्ग में साधन और फल होनों ही