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श्रीमद्वल्लभाचार्य
मोक्ष सब कुछ भगवान् श्रीकृष्ण ही माने गये हों वही 'पुष्टिमार्ग' है। सच्ची बात तो यह है कि मनुष्य को जब भगवान् के माहात्म्य की खवर पडती है तो वह उन के सुखदायक चरणों की शरण को छोड कर कहीं नहीं जा सकता ।
मकरन्द निर्भरे मधुत्रतो नेक्षुरकं हि वीक्षते ॥ इस मार्ग के प्रवर्तक भगवान् वल्लभाचार्य जी हैं ।
भगवान् श्रीवल्लभाचार्य ने अपने निबन्ध के भागवतार्थ प्रकरण में स्पष्ट लिखा है 'कृष्णानुग्रहरूपा हि पुष्टिः' अर्थात् भगवान् के अनुग्रह का ही नाम पुष्टिमार्ग है । भगवान् परम कृपासिन्धु हैं और अगणितानन्द हैं । वे जीव का किस प्रकार कल्याण हो यही कामना किया करते हैं । भगवान् जब कृपा करते हैं तब उनकी भक्ति मिलती है । जिन पर भगवान् की कृपा नहीं होती वे भगवान् की भक्ति से दूर ही रहा करते हैं । और देवता सब गणितानन्द हैं अर्थात् उन का और उन के द्वारा दिया गया आनन्दसुख-गणित होता है - क्षुद्र और नाशवान् होता हैं । किन्तु भगवान् तो अगणितानन्द हैं उन का भक्त कभी क्षुद्र बातों पर मोहित नहीं होता वह तो केवल भगवान् को ही चाहता भगवान् के अतिरिक्त उस की अभिलाषा किसी जगह नहीं होती । 'पुष्टि' का सुन्दर अर्थ आचार्य श्रीमहाप्रभुजी ने अपने अणुभाष्य में देखिये किस प्रकार किया है । आप लिखते
है