SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 136
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ श्रीमद्वलभाचार्य भाव देखते हैं, जहां भगवान् जीव की शक्ति पर मुग्ध न हो कर अनुरक्ति पर मोहित होते हैं वही 'पुष्टिमार्ग' है। जहां अत्यन्त उत्कृष्ट सिद्धि प्राप्त हो जाने पर और शुद्ध पुष्टि भक्ति मिलजाने पर लोक और वेद के 'बंधन' 'बंधन' मालुम होने लगते हैं और भगवान् श्रीकृष्णके भक्तिभावातिरेक में डूब जाने पर लोक वेद नियम, भक्तकी उच्च प्रगति में बाधा नहीं पहुंचा सकते वही 'पुष्टिमार्ग' है । जहां भगवान् के भक्तों पर प्रेम है, जहां भगवान् के और उनके भक्तों के विरोधियों के लिये क्षमा है तथा उदासीनों पर जहां दया है वहीं 'पुष्टिमार्ग' है । जहां अपने आपको भगवान् का एक तुच्छ सेवक मात्र गिना जाता हो, जहां दैन्य ही प्रभू के प्रसन्न करने का एक साधन समझा गया हो उसे ' पुष्टिमार्ग' कहते । जहां जीव ब्रह्म का अंश समझा गया हो, जहां जगत् सत्य समझा गया हो वही पुष्टिमार्ग है। जहां, स्वप्न, मूर्ति आदि भगवद्विग्रहों में लौकिकता दीखना, गंधर्वनगर, शुक्तिरजत आदि असत्य प्रपञ्च समझे जाते हों, जहां सत्य प्रपञ्च में नश्वरता आदि भी दीखना मायिक समझा गया हो उसे 'पुष्टिमार्ग' कहते हैं । जहां पञ्चमहाभूत और उनसे बने हुए पदार्थ, वेद, स्वर्ग, मोक्ष आदि प्रपञ्च कारणरूप होने से सत्य समझे गये हों और उन्हें ब्रह्मात्मक माना
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy