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श्रीमद्वल्लभाचार्य
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बनाते हो विगडे को नाथ !
वाह्याडम्बर से मोहित हो मन्त्र मुग्ध थे वने हुए ! खोकर अपने गौरव को थे क्षुद्र भीरु हम बने हुए ! आकर तुमने दिव्य देह से वैश्वानर हमको तारा ! अमृत जलधि से सिंचित कर इस शुष्क हृदय को अपनाया !
जय जय श्रीवल्लभ, भगवन् जय वल्लभ !
पुष्टिमार्ग का कुञ्ज आपका, अमिट शान्ति का मार्ग आप का !
जिस निकुञ्ज में थकित पथिक गण क्षण में तजता है दुख को ! जिस निकुञ्ज के भ्रमर गणों की गीति छुडाती भव भयको ! उस निकुञ्ज के जीवन धन तुम वार वार अवतार गहौ ! इस अपने चिर बिछुडे वन का एक बार तो ध्यान धरौ !
जय जय श्रीवल्लभ, भगवन् जय वल्लभ !