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________________ श्रीमद्वल्लभाचार्य इच्छा नहीं है । ऐसी अवस्था में श्रीमद् भागवतादिका आश्रय लेकर ज्ञानमार्ग में ही स्थित रहना उचित है । प्रभु जिस प्रकार रक्खें सेवक को उसी प्रकार रहना यही सेवक का धर्म है । लौकिक वातों में यदि, लौकिक पदार्थों के उपभोग में जबर्दस्ती मन जाता हो तो, अथवा सेवा में सदा बलवान् विघ्न आते रहते हों तो यह समझ लेना होगा कि 'प्रभुकी इच्छा मुझे संसार में ही रखने की है। निरोधलक्षण—इस ग्रन्थ के तात्पर्य को हमने अन्यत्र समझाया है। पुरुषोत्तम सहस्रनाम-इसमें २५६ श्लोक हैं। पुरुषोत्तम श्रीकृष्णके इसमें १००० नाम हैं और श्रीमद्भागवतका अतिसंक्षेपमें तात्पर्य है। त्रिविधनामावली-इसमें १०८ श्लोक हैं और इसमें भगवान की बाललीला, प्रौढलीला और राजलीलाओंका वर्णन हैं। मधुराष्टक-इस में भगवान् के समस्त श्री अंग मधुर और आनन्दमय हैं इस का वर्णन किया गया है। अब श्रीमहल्लभाचार्य विरचित विवरणात्मक अन्धों का वर्णन करते हैं। अणुभाष्य-इस ग्रन्थ में व्यास सूत्रों पर भाष्य किया गया है । इस ग्रन्थ को आप पूर्ण नहीं कर सके थे। इस की पूर्ति आपके पुत्र श्रीमद्विट्ठलनाथजीने की है।
SR No.010555
Book TitleVallabhacharya aur Unke Siddhanta
Original Sutra AuthorN/A
AuthorVajranath Sharma
PublisherVajranath Sharma
Publication Year
Total Pages405
LanguageHindi, Sanskrit
ClassificationInterfaith & Hinduism
File Size10 MB
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