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श्रीमद्वल्लभाचार्य हट जाती है । प्रभु में जव अत्यन्त आसक्ति हो जाती है उसे व्यसन कहते हैं । यह व्यसन जव सिद्ध होजाय तव जीव कृतार्थ हो जाता है। प्रभु प्रेम की जब इतनी उच्च कोटि को जीव पहुंच जाय तव घर को छोड दे । जहां भगवदीय महात्मा गण निवास करते हों वहां जाकर रहे । __ जलभेद-बहुत से लोग भगवान् का गुणगान किया करते हैं । किन्तु वर्णन कर्ता और गुणगान कर्ता के अन्तःकरणों के भेद से भगवद्गुणों में भी भेद हो जाता है इस लिये भिन्न २ मनुष्यों को भिन्न २ प्रकार के फल प्राप्त होते हैं । इसी बात का वर्णन इस ग्रन्थ में है।
पंचपद्य-इस ग्रन्थ में भगवत्कथा के श्रोताओंका वर्णन है । प्रभुके गुणगान सुनने वाले अनेक हैं । उन में से उत्तम श्रोता वे हैं जो प्रभु में दृढ आसक्ति रखते हैं। जिनको लौकिक या वैदिक फलकी आकांक्षा नहीं है वे उत्तम श्रोता हैं।
सन्यास निर्णय-इस ग्रन्थ में सन्यास का निर्णय किया है। अच्छी तरह अर्थात् एक दम सबको छोड देना ही 'सन्यास' शब्द का अर्थ है । सो यह असम्भव है । जब तक देह बना रहै तब तक यह होना कठिन है। __ भक्ति सिद्ध हो इस लिये सन्यास लेनेकी मना है । क्यों कि नवधा भक्ति बिना गृहका आश्रय लिये बन नहीं सकती।