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और उनके सिद्धान्त । नवरत्न-इस ग्रन्थ में नौ श्लोक नौ रत्न की तरह हैं इस लिये इस ग्रन्थ का नाम 'नवरत्न' यथार्थ रक्खा गया है। ___ जीव को स्वभाव वश अनेक समय में अनेक चिन्ता लगी रहती हैं। किन्तु इस ग्रन्थ में यह बतलाया गया है कि जीव को किसी भी प्रकार की चिन्ता करनी उचित नहीं है । क्यों कि जिन ने ब्रह्मसम्बन्ध ले लिया है उनके मालिक श्रीकृष्ण जीव पर सर्वदा अनुग्रह ही करेंगे । कभी उस का अहित होने नहीं देंगे।
इस ग्रन्थ में कहा गया है कि यदि योग क्षेम के विषय में चिन्ता होती हो तो वह भी व्यर्थ है क्यों कि जीवने सपरिकर अपने आप को प्रभु के निवेदन कर दिया है। प्रभु सर्व जगत् के मालिक हैं, सव के अन्तर्यामी हैं। अपनी इच्छा से सब करेंगे । जीव के चिन्ता करने से कुछ नहीं होगा । ईश्वर सब अपने हित को ही करेंगे।
इस ग्रन्थ में सर्वथा चिन्ताओं का परित्याग करने को कहा गया है। __ अन्तःकरण प्रबोध-इस ग्रन्थ में अपने अन्तःकरण को समझाने की बातों का समावेश है । किसी समय असावधानता से यदि प्रभु का अपराव जीव के द्वारा हो जाय तो अतिशय दीनतापूर्वक क्षमा याचना प्रभु के सन्मुख करनी चाहिये । इसी बात का इस ग्रन्थ में सन्निवेश है।