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________________ अकाम मरणीय त्युकाल-यह जीवन कार्य का जोड़ है। जीवन , ८ में भी मरगा तो अनेक बार होता है क्योंकि प्रमाद ही मरण है फिर भी इस अध्ययन में तो शरीर त्याग के समय की दशा का वर्णन किया है। उस स्थिति को पहिले से ही समझ कर प्रात्मा अप्रमत्त हो सके यही इस वर्णन का हेतु है। (१) दुस्तर और महाप्रवाह वाले इस संसार समुंद्र को अनेक पुरुप पार कर गये वहां महावुद्धिमान एक जिज्ञासु ने यह प्रश्न पूंछा:(२) जीवों की मरण समय में दो स्थितियां होती हैं। (१) अकाम मरण; और (२) सकाम मरण । टिप्पणी-जिस मरण के समय में अशांति हो से अथवा ध्येयशून्य मरण को अकाम मरण और ध्येयपूर्वक मृत्यु को 'सकाम मरण' कहते हैं। (३) बालकों का तो अकाम मरण होता है जो वारंवार हुश्रा करता है और पंडित पुरुषों का सकाम मरण होता है जो केवल एकही वार होता है।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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