SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 75
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ चतुरंगीय [ चार अंग संबंधी ] मान में पहिले जड़, शाखा प्रशाखा (छोटी २ डालियां) पुष्प और बाद में फल पाते है अर्थात् क्रम से ये ४ बाते होती है जिस तरह समस्त सृष्टि में यही नियम व्यापक है इसी तरह जीवन की उन्नति का भी यही क्रम है। जीवन विकास की भिन्न भिन्न भूमिकाएं (श्रेणियाँ ) उसका क्रम कहलाती है। क्रम (श्रेणियां) विना आगे नहीं बढ़ा जाता इसलिये इस जीवन विकास का अनुक्रम जिन चार भूमिकाओं में भगवान महावीर ने बताया है उसका इस अध्ययन में वर्णन किया है। भगवान वोले:(१) प्राणिमात्र को इन ४ उत्तम अंगों (जीवन विकास के विभागों) की प्राप्ति होना इस संसार में दुर्लभ है-(१) मनुष्यत्व; (२) श्रुति (सत्य श्रवण); (३) श्रद्धा (निश्चित विश्वास); और (४) संयम धारण करने की शक्ति ।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy