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________________ विनय श्रुत ७ (आय) को सुनकर अपने कल्याण का इच्छुक (शिष्य) विनय मार्ग में अपना मन लगावे । ( ७ ) इसलिये मोक्ष के इच्छुक और सत्यशोधक को विवेकपूर्वक विनय की आराधना करनी चाहिये और सदाचार को बढ़ाते रहना चाहिये । ऐसा करने से उसको कहीं भी अपमानित अथवा निराश नहीं होना पड़ेगा । (८) प्रति शान्त बनो और मित्रभाव से ज्ञानी पुरुषों से उपयोगी साधन सीखो। निरर्थक वस्तुओं को तो छोड़ ही देना चाहिये । (९) महापुरुषों की शिक्षा से क्रुद्ध होना मूर्ख मनुष्य का काम है । चतुर होकर सहनशीलता रक्खो । नीच वृत्ति के मनुष्यों की संगति न करो । हँसी मजाक और खेल कूद भी छोड़ देने चाहिये । टिप्पणी-- महापुरुष जव शिक्षा देते हों तब कैसा आचरण करना चाहिये उसका लक्षण उपरोक्त गाथा में दिया है । (१०) कोप करना यह चांडाल कर्म है, यह न करना चाहिये । व्यर्थ बकवाद मत करो । समय की अनुकूलता के अनुसार उपदेश श्रवण कर फिर उसका एकान्त में चिन्तनमनन करना चाहिए । भूल (११) में यदि कदाचित चांडाल कर्म ( क्रोध ) हो जाय तो उसे कभी मत छुपाओ। जो दोष हो जाय उसे गुरुजनों के समक्ष स्वीकार करो। यदि अपनी दोष न हो तो विनयपूर्वक उसका खुलासा कर देना चाहिये । "
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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