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________________ i ४२३ जीवाजीवविभक्ति (५०) ( सिद्ध होते समय उन जीवों के शरीर की अवगाहना कितनी होती है यह बताते हैं: - ) जघन्य अवगाहना दो हाथ की और उत्कृष्ट ५०० धनुष की होती है और इन दोनों के बीच की मध्यम अवगाहना है । पर्वतादि ऊँचे स्थानों, गुफा, गड्ढे आदि नीचे स्थानों, त्रिकोणाकार प्रदेश, समुद्र, जलाशय आदि स्थानो से जोव सिद्धावस्था को प्राप्त हो सकते हैं । (५१) एक समय में अधिक से अधिक दस ( कृत ) नपुंसक, बीस स्त्रियां, और १०८ पुरुष सिद्ध हो सकते हैं । (५२) एक समय में अधिक से दस अन्य लिंग में तथा सकते हैं । अधिक चार जीव गृहलिंग में, १०८ जैन लिंग में सिद्ध हो टिप्पणी- जैन शासन का पालन करो अथवा अन्य धर्म का पालन करो, गृहस्थाश्रम में रहो अथवा त्यागाश्रम में रहो, जहां २ भी जितनी २ योग्यता ( वैराग्य सिद्धि ) प्राप्ति की जायगी वहां वहाँ से जीवों को मोक्ष की प्राप्ति होती ही है । मोक्ष प्राप्ति का ठेका किसी अमुक धर्म मत, दर्शन या आश्रम ने नहीं लिया है । (५३) एक समय में एक ही साथ जघन्य अवगाहना वाले अधिक से अधिक चार जीव और उत्कृष्ट अवगाहना वाले दो जीव और मध्यम अवगाहना के १०८ जीव सिद्ध हो सकते हैं । (५४) एक समय में, एक ही साथ, ऊँचे लोक ( मेरुपर्वत की चूलिका ) से चार, समुद्र में से दो, नदी आदि टेढ़े मेढे
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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