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________________ ४२२ उत्तराध्ययन सूत्र (४३) जो पुद्गल वृत्ताकार याकृति का हो उसमें वर्ण, गंध, रस, और स्पर्श की भजना समझनी चाहिये । (४४) जो पुद्गल त्रिकोणाकार आकृति का हो उसमें वर्ण, गंध, रस, और स्पर्श की भजना समझनी चाहिये । (४५) जो पुद्गल चतुर्भुजाकार आकृति का हो उसमें वर्ण, गंध, रस, और स्पर्श की भजना समझनी चाहिये । (४६) जो पुद्गल समचतुर्भुजाकार आकृति का हो उसमें वर्ण, गंध, रस, और स्पर्श की भजना समझनी चाहिये । (४७) इस तरह अजीव तत्त्व का विभाग संक्षेप में कहा । अव जीवतत्त्व के विभाग को क्रमपूर्वक कहता हूँ । (४८) सर्वज्ञ भगवान ने जीवों के दो भेद कहे हैं: - ( १ ) संसारी ( कर्मसहित ), तथा ( २ ) सिद्ध ( कर्मरहित ) । उनमें से सिद्ध जीवों के अनेक भेद हैं । सो मै तुम्हें कहता हूँतुम ध्यान पूर्वक सुनो । (४९) उन सिद्ध जीवों में स्त्रीलिंग तथा नपुंसक लिंग से, जैन साधु के वेश से, अन्य दर्शन के ( साधु सन्यासी आदि ) वेश से अथवा गृहस्थ वेश से भी सिद्ध हुए जीवों का समावेश होता है । टिप्पणीः—स्त्री, पुरुष और वे नपुंसक जो जन्म से नपुंसक पैदा न हुए हो किन्तु जिनने योगाभ्यास आदि की पूर्ण सिद्धि के लिये अपने आप को नपुंसक बना लिया हो - ये तीनों ही मोक्ष पाने के अधि गृहस्थाश्रम अथवा त्यागाश्रम इन दोनों के द्वारा मोक्ष इस तरह यहां तो केवल २ प्रकार के कारी हैं । सिद्धि की जा सकती है | दी सिद्धों का वर्णन किया है परन्तु दूसरी जगह इनके विशेष भेटू कर कुल १५ प्रकार के सिद्धों का वर्णन मिलता है ।
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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