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जीवाजीवविभक्ति
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(२) जिसमें जीव तथा अजीव ये दोनों तत्त्व भरे हुए हैं उसे
तीर्थंकरों ने 'लोक' कहा है और अजीव के एक देश को जहां मात्र आकाश का ही अस्तित्व है अन्य कोई पदार्थ
नहीं है-उसे 'अलोक' कहा है। (३) जीव और अजीवों का निरूपण द्रव्य, क्षेत्र, काल तथा
भाव-इन चार प्रकारों से होता है। (४) अजीव तत्त्व के मुख्य रूप से (१ ) रूपी, (२) अरूपी,
ये दो भेद हैं। उनमें से रूपी के चार तथा अरूपी के
१० भेद हैं। (५) धर्मास्तिकाय के (१) स्कंध, (२) देश, तथा (३)
प्रदेश तथा अधर्मास्तिकाय के (४) स्कंध, (५) देश
(६) प्रदेश, (६) और आकाशास्तिकाय के ( ७ ) स्कंध, (८) देश, (९)
प्रदेश तथा (१०) अद्धा समय (कालतत्त्व)-ये सब
मिलाकर अरूपी के १० भेद हैं। टिप्पणी-किसी भी संपूर्ण द्रव्य के पूर्ण विभाग को 'स्कंध' कहते हैं।
स्कंध के अमुक कल्पित विभाग को देश कहते हैं और एक छोटा टुकड़ा जिसका फिर कोई दूसरा खण्ड न होसके किन्तु स्कंध के माथ संबंधित हो तो उसे 'प्रदेश' कहते हैं और यदि वह स्कंध
से अलग हो जाय तो उसे 'परमाणु' कहते हैं। (७) (क्षेत्र दृष्टि से वर्णन ) धर्मास्तिकाय तथा अधर्मास्तिका
इन दोनों द्रव्यों का क्षेत्र लोक प्रमाण है और आकाशास्तिकाय का क्षेत्र संपूर्ण लोक और अलोक दोनों है। समय