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उत्तराध्ययन सूत्र
(४६) ( केवलीभगवान की शुक्ल लेश्या के विषय में कहते हैं)
शुक्ल लेश्यादि की जघन्य स्थिति एक अन्तर्मुहूर्त की तथा उत्कृष्ट स्थिति नौ वर्ष कम एक क्रोड पूर्व की समझनी
चाहिये। (४७) मनुष्य एवं तियेच गतियों की लेश्यास्थिति का वर्णन मैंने
तुम्हे सुनाया; अब मैं तुम्हें देवों की लेश्यास्थिति कहता हूँ
उसे ध्यानपूर्वक सुनो। (४८) कृष्ण लेश्या की जघन्य स्थिति दस हजार की तथा उत्कृष्ट
स्थिति एक पल्य के असंख्यातवें भाग जितनी है।। (४५) नील लेश्या की जवन्य स्थिति, एक समय अधिक कृष्ण
लेश्या की उत्कृष्ट स्थिति के वरावर है तथा उत्कृष्ट स्थिति
एक पल्य के असंख्यातवें भाग के वरावर है। (५०) कापोती लेश्या की जवन्य स्थिति नील लेश्या की उत्कृष्ट
स्थिति में एक समय अविका तथा उत्कृष्ट स्थिति एक
पल्य के असंख्यातवें भाग के बराबर है। (५१) अव भवनवासी, व्यन्तर, ज्योतिप, और वैमानिक देवोंकी
तेजो लेश्या की स्थिति कहता हूँ, उसे ध्यानपूर्वक सुनोः(५२) तेजो लेश्या की जघन्य स्थिति एक पल्य की और उत्कृष्ट
__ एक पल्य के असंख्यातवें भाग सहित दो सागर की है। (५३) (भवनवासी एवं व्यंतर देवों की ) तेजो लेश्या की जवन्य
स्थिति दसहजार वर्षों की और उत्कृष्ट स्थिति एक पल्य के असंख्यात भाग सहित दो सागर की अपेक्षा से वैमानिक देवों की है।