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लेश्या
[ भावों का चढ़ाव उतार ]
श्या शब्द के अनेक अर्थ है । लेश्या; कांति सौंदर्य,
4 मनोवृत्ति आदि अर्थों में व्यवहृत होता है। किंतु यहां पर लेश्या का जीवात्मा के अध्यवसाय अथवा परिणाम,
यहां पर लेश्या का उपयोग हुआ है ! ति (इकट्ठे हुए.),
प्रत्येक संसारी जीवात्मा में संचित (इकट्ठे हुए), प्रारब्ध उदीयमान,) तथा क्रियमाण ( वर्तमान में उदित)-ये तीन प्रकार के कर्म विद्यमान रहते है । यद्यपि कर्म स्वयं जड़ वस्तु है. स्पर्श, रस, गंध और वर्ण से सहित है और प्रात्मा ज्ञान, आनन्द और सत्यमय है, उसका लक्षण-उसका स्वभाव जड़ दव्य से विलकुल भिन्न-विपरीत है फिर भी जड़ एवं चेतन का संसर्ग होने से जड़जन्य परिणामो का इस जीवात्मा पर असर पडे विना नहीं रहता । जैसे लोहा कठिन ठोस पदार्थ है और अग्नि न ठोस है, न कठिन है, फिर भी अग्नि के संयोग से लोहा लाल हो जाता है वैसे ही जड़ कर्मों के प्रभाव से प्रात्मा में भी विकार पैदा हो जाते है।