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________________ तथा भोक्ता आत्मा ही है इसकी प्रतीति-आत्मा ही अपना शत्रु. किंवा मित्र है-संत के समागमसे मगधपति को पेदा हुमा भानंद । २१-समुद्र पालीय २२१ चम्पानगरी में रहने वाले भगवान महावीर के शिष्य पालित का चरित्र-उसके पुत्र समुद्रपाल को एक चोर की दशा देखते ही उत्पन्न हुमा वैराग्य माव-उनकी अढग तपश्चर्या-त्यागका वर्णन । २२-रथनेसीय २२६ अरिष्टनेमि का पूर्वजीवन तरुणवय में ही योग संस्कार की लागृति-विवाह के लिये जाते हुए मार्ग में एक छोटा सा निमिच मिलते ही वैराग्य का उत्पन्न होना-स्त्रीरत्न राजीमती का अमि.. निष्क्रमण-स्यनेमि तथा राजीमती का एकान्त में आकस्मिक मिलन -स्थनेमि का कामातुर होना-राजीमती की अढगता-राजीमती के. उपदेश से स्थनेमि का जागृत होना-स्त्रीशक्ति का ज्वलंत दृष्टांत । २३-केशिगौतमीय २४४ श्रावस्तीनगरी में महामुनि केशीश्रमण से ज्ञानीमुनि गौतम का मिलना गम्भीर प्रश्नोत्तर-समय धर्म की महत्ता-प्रश्नोत्तरों से सबका समाधान होना और भगवान महावीर द्वारा प्ररूपित आचार का ग्रहण । २४-समितियां २६८ आठ प्रवचन माताओं का वर्णन-सावधानी एवं संयम का संपूर्ण वर्णन-कैसे चलना, बोलना, भिक्षा प्राप्त करना, व्यवस्था रखना-मन, वचन और काय संयम की रक्षा आदि का विस्तृत वर्णन । २५-यज्ञीय २७८ ' याजक कौन है ?-यज्ञ कौनसा ठीक है ?--अग्नि कैम्री होनी चाहिये ? ब्राह्मण किसे कहते हैं-वेद का असली रहस्य-सचायज्ञ
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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