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तपो मार्ग
मस्त संसार प्राधिभौतिक, आधिदैविक तथा प्राध्या
.५ त्मिक दुःखों से घिरा हृया है। सांसारिक समस्त प्राणी आधि, व्याधि तथा उपाधि से दुःखी हो रहे हैं। कमा शारीरिक, तो कभी मानसिक तो कभी दूसरी उपाधिया आर की दुःख परंपरा लगी हुई रहती है और जीव इन दुःखा ९ निरन्तर छूटना चाहते रहते हैं।
प्रत्येक काल में प्रत्येक उद्धारक पुरुषों ने जुदे २ प्रकार, श्रौषधियां बताई है। भगवान महावीर ने सर्व सत्र निवारगा के लिये मात्र एकही उत्तम कोटि की जड़ी बूटावा है और उसका नाम है तपश्चर्या । । तपश्चर्या के मुख्य दो भेद हैं जिन्हें (१) प्रांतरिक, (२) बाह्य ये नाम दिये गये है। वाह्य तपश्चयों का मुख्यतः उद्देश्य यात्मा कोयप्रमत्तर
या सरप्रमादी होगा तो उसकी प्रवृत्तियां भी पाप का तरफ विष ढलती रहेगी और वैसी परिस्थिति म तथा इन्द्रियां साथ होने के पहले वाधक हो जाता है
। परिस्थिति में शरीर "धक हो जाती है। जब