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सम्यक्त्व पराक्रम
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क्रिया का बंध करता है। इस कम की स्थिति केवल दो समय मात्र की होती है और इसका विपाक ( फल ) अति सुख कर होता है। यह कर्म पहिले समय में बंध होता है, दूसरे समय में उदय होता है और तीसरे समय में फल देकर क्षय हो जाता है। इस तरह पहिले समय में बंध, दूसरे समय में उदय, तथा तीसरे समय में निर्जरा होकर
चौथे समय में वह जीवात्मा सर्वथा कमरहित हो जाता है। टिप्पणीः कर्मों का सविस्तर वर्णन जानने के लिये तेतीसवां अध्ययन पदो। (७२) इसके बाद वह केवली भगवान अपना अवशिष्ट आयु कम
भोगकर निर्वाण से दो घड़ी (अन्तर्मुहूर्त ) पहिले मन, वचन और काय की समस्त प्रवृत्तियों का रोध कर सूक्ष्मक्रिया प्रतिपाति ( यह शुक्ल ध्यान का तीसरा भेद है) का चिन्तन कर सबसे पहिले मनके, फिर वचन के तथा बाद में काय के भोगों को रोकते हैं और ऐसा करने से वे अपनी श्वासोच्छास क्रिया का भी निरोध करते हैं । इस क्रिया के बाद पांच ह्रस्व अक्षरों के उच्चारण करने में जितना समय लगता है उतने समय तक शैलेशी अवस्था में रह कर वह जीव अणगारसमुच्छिनक्रिय ( क्रियारहित ). तथा अनिवृत्ति (अक्रियावृत्ति ) नामक शुक्ल ध्यान का चिन्तन करता हुआ वेदनीय, आयुष्य, नाम और गोत्र
इन चार अधातिया कर्मों को एक साथ खपा देता है। टिप्पणी:-ध्यान के आर्त, रौद्र, धर्म, और शुक्ल ये चार भेद हैं। शुक्ल
ध्यान भी चार प्रकार का होता है जिन में से अन्तिम दो का केवली. जीवारमा चिन्तवन करता है।