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उत्तराध्ययन सूत्र
(१४) इन सब कुशिष्यों को पढ़ाया, गुनाया, दीक्षित किया तथा
अन्न पानी से पालन किया फिर भी जैसे हँस के बच्चे ' पंख निकलते ही दिशाविदिशा में ( इधर उधर ) स्वेच्छा
नुसार उड़ जाते हैं वैसे ही गुरु को छोड़कर ये शिष्य अकेले
ही स्वच्छंदता से विचरते हैं। (१५) जैसे गरियार वैल का सारथी (हांकनेवाला गाड़ीवान )
दुःख उठाता है वैसे ही गाचार्य अपने ऐसे कुशिष्यों के होने से खेदखिन्न होकर यह कह रहे हैं कि 'जिन शिष्यों से मेरी आत्मा क्लेशित हो ऐसे दुष्ट शिष्य किस.
काम के ?' (१६) अड़ियल टट्टू जैसे मेरे शिष्य हैं-ऐसा विचार कर
गर्याचार्य मुनीश्वर उन अड़ियल टट्टुओं को छोड़कर एकान्त
में तप साधन करते हैं। (१७) उसके बाद वे सुकोमल, नम्रतायुक्त, गम्भीर, समाधिवंत
और सदाचारमय आचार से समन्वित गाचार्य महात्मा
वसुधा ( पृथ्वी) पर अकेले ही विहार करते रहे। टिप्पणी-जैले गरियार बैल गाड़ी को तोड़ डालता है, गाड़ीवान को
दुस्खी करता है और अपने स्वच्छन्द से स्वयं भी दुःखी होता है वैसे ही स्वच्छन्दी शिष्य ( साधक) संयम से पतित होजाता है। वह अपने आलम्बन रूपी सद्गल आदि का यथेष्ट लाभ नहीं ले सकता और अपनी आत्मा को भी कलुपित करता है । स्वतन्त्रता के बहाने से बहुत से लोग प्रायः स्वच्छन्दता की ही पुष्टि करते रहते हैं। वस्तुतः विचार किया जाय तो मालूम पड़ेगा कि स्वच्छन्दता भी एक तरह की सूक्षन परतंत्रता ही है और महापुरुषों के प्रति जो