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________________ खलुंकीय स्थिति में वे अपना धर्म बचाकर एकांत में जाकर वसे और और स्वावलंबन की प्रवल शक्ति को वृद्धिंगत कर उनने अपने मात्महित की साधना की। भगवान बोले(१) सर्व शास्त्रों के पारगामी एक गार्य नाम के गणधर तथा स्थविर मुनि थे। वे गणिभाव से युक्त रहकर निरंतर समाधिसाव की साधना किया करते थे। टिप्पणी-जो अन्य जीपों को धर्म में स्थिर करता है अर्थात् ज्ञानवृद्ध, तपोवृद्ध, तथा प्रवज्यावृद्ध होता है उसे 'स्थविर भिक्षु कहते है और जो भिक्षुगण का व्यवस्थापक होता है उसे 'गणधर' कहते हैं। . (२) जैसे गाड़ी में योग्य वहन (बैल ) जोड़ने से वह गाड़ीवान अटवी (वन्य मार्ग) को सरलता से पार कर जाता है वैसे ही योग ( संयम ) मार्ग में वहन करते हुए शिष्य साधक तथा उनको दोरनेवाला गुरु दोनो ही संसार रूपी अटवी को सरलता से पार कर जाते हैं। (३) परन्तु जो कोई गाड़ीवान गरियार बैलो को गाड़ी में जोदता है वह उन्हे (न चलने के कारण ) यद्यपि मारते २ थक जाता है फिर भी अटवी को पार नहीं कर पाता और वहां बड़ा ही दुःखी होता है । और अशांति का अनु‘भव करता है। मारते २ गाड़ीवान का चाबुक भी टूट जाता है। (४) बहुत से गाड़ीवान ऐसे गरियार बैल की पूंछ मरोड़ते हैं, कोई २ बार २ पैनी आर मार कर उन्हे बीध डालते हैं, फिरभी गरियार वैल अपनी जगह से टससे मस नहीं होते २०
SR No.010553
Book TitleAgam 43 Mool 04 Uttaradhyayan Sutra
Original Sutra AuthorN/A
AuthorSaubhagyachandra
PublisherSaubhagyachandra
Publication Year
Total Pages547
LanguageHindi, Prakrit
ClassificationBook_Devnagari, Agam, Canon, & agam_uttaradhyayan
File Size17 MB
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