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खलुंकीय
गरियार चल संबंधी
२७ साधक के लिये सद्गुरु जितना सहायक है-जितना
अवलवन है, उतना ही शिप्यसमूह भी सद्गुरु के लिये सहायक एवं अवलंबन है। -
पूर्णता प्राप्त करने के पहिले सभी को सहायक तथा साधनों की आवश्यकता तो रहती ही है परन्तु यदि सहायक तथा साधन ही मार्ग में उल्टे वाधक हो जाय तो अपने और दूसरी इन दोनों के हितों की हानि होती है।
गााचार्य बड़े समर्थ विद्वान थे। प्रसिद्ध गणधर (गुरुकुलपति) थे। उनके पास सैकड़ों शिष्यों का परिवार था किन्तु जब वह परिवार स्वच्छंद हो गया, संयम मार्ग में हानि पहुंचाने लगा तव उनने अपना आत्मधर्म निभाकर अपना कर्तव्य समझकर उनको सुधारने का खूब ही प्रयत्न कर देखा परन्तु अन्त में वे असफल ही रहे।
शिष्यों का मोह, अथवा शिष्यों पर श्रासक्ति अथवा सम्प्र. दाय का ममत्व उस महापुरुष को लेशमात्र भी न था। उस